SOURCE : EODB NEWS | PUBLISHED : 25 JUNE 2024
आयुर्वेद बदलेगा बीमारियों का इलाज
भारत की पहचान सिर्फ उसकी खूबसूरती और विविधता से ही नहीं, बल्कि उसकी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत से भी बनती है। इस विरासत का एक अनमोल हिस्सा है, आयुष चिकित्सा पद्धति। सदियों से ये परंपरागत तरीके भारतीय स्वास्थ्य सेवा प्रणाली की रीढ़ की हड्डी रहे हैं। आयुष बीमारी को रोकने और उसका इलाज करने का एक प्राचीन और समग्र नजरिया है। ये सिर्फ बीमारी को दूर करने पर ही ध्यान नहीं देता बल्कि शरीर, मन और आत्मा के संतुलन पर बल देता है। इसमें योग, आहार, जीवन शैली में बदलाव, जड़ी-बूटियां और प्राकृतिक दवाएं शामिल हो सकती हैं।
आधुनिक समय में भी आयुष चिकित्सा पद्धति को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार पूरी तरह से प्रतिबद्ध है। आयुष मंत्रालय विभिन्न शोध परिषदों, राष्ट्रीय संस्थानों और योजनाओं के जरिए आयुष से जुड़े शोध कार्यों को आर्थिक मदद देता है। ये धन मुख्य रूप से आयुष उपचारों की प्रभावशीलता जांचने, हर्बल दवाओं के गुणों को समझने और पीढ़ियों से चले आ रहे पारंपरिक ज्ञान का वैज्ञानिक परीक्षण करने के लिए दिया जाता है। इस शोध से उच्च गुणवत्ता वाले अध्ययन, नैदानिक परीक्षण और व्यवस्थित समीक्षाओं को बढ़ावा मिलता है।
आयुष मंत्रालय के शोध और विकास प्रयास
आयुष मंत्रालय ने आयुर्वेद, होम्योपैथी, यूनानी, सिद्ध, योग और प्राकृतिक चिकित्सा जैसे क्षेत्रों में शोध को बढ़ावा देने के लिए पांच स्वायत्त अनुसंधान परिषदों की स्थापना की है। ये परिषद पूरे भारत में स्थित विभिन्न संस्थानों, केंद्रों और इकाइयों के माध्यम से शोध कार्य करती हैं। साथ ही, वे विभिन्न विश्वविद्यालयों, अस्पतालों और संस्थानों के साथ मिलकर भी शोध करती हैं।
इन परिषदों के अंतर्गत होने वाले शोध कार्यों में शामिल हैं:
- औषधीय पौधों पर शोध (जैसे औषधीय पौधों की पारंपरिक जानकारी का अध्ययन, पौधों के रासायनिक गुणों की जांच और ऊतक संवर्धन तकनीक का उपयोग)
- दवाओं के मानकीकरण और औषधीय गुणों पर शोध
- उपचारों पर नैदानिक परीक्षण
- प्राचीन ग्रंथों का अध्ययन
- जागरुकता फैलाने के कार्यक्रम
यह परिषद शोध प्रोटोकॉल विकसित करने के साथ-साथ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय शोध संगठनों के साथ मिलकर आयुष में वैज्ञानिक जांच को बढ़ावा देने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
आयुष मंत्रालय अपने अनुसंधान परिषदों, राष्ट्रीय संस्थानों और विभिन्न योजनाओं के माध्यम से आयुष से जुड़े शोध कार्यों को आर्थिक सहायता भी प्रदान करता है। यह धन मुख्य रूप से आयुष उपचारों, हर्बल दवाओं और पारंपरिक ज्ञान पर केंद्रित उच्च-गुणवत्ता वाले शोध अध्ययनों, नैदानिक परीक्षणों और व्यवस्थित समीक्षाओं के लिए दिया जाता है।
इसके अतिरिक्त, एक्सट्रा मुरल रिसर्च स्कीम (Extra Mural Research Scheme) के माध्यम से शैक्षणिक और शोध संस्थानों को वनस्पति विज्ञान, रसायन विज्ञान, फार्मेसी, औषध विज्ञान जैसे संबंधित क्षेत्रों के साथ मिलकर शोध करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। इससे न केवल वैज्ञानिक आंकड़ों को समृद्ध किया जाता है बल्कि बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) वाले नवाचारों को भी बढ़ावा मिलता है।
आयुष में सहयोग को बढ़ावा देना
“आयुष” चिकित्सा पद्धतियां सदियों से भारत में स्वास्थ्य का ख्याल रखती आ रही हैं। अब आयुष मंत्रालय इन पारंपरिक तरीकों को और मजबूत बनाने के लिए एक खास रणनीति पर काम कर रहा है। इस रणनीति का मुख्य आधार है- सहयोग। आयुष विभिन्न क्षेत्रों के शोधकर्ताओं, चिकित्सकों और विशेषज्ञों के बीच सहयोग को प्रोत्साहित करता है। यह सहयोगात्मक दृष्टिकोण आयुष और आधुनिक चिकित्सा की ताकतों को मिलाकर एकीकृत स्वास्थ्य देखभाल मॉडल विकसित करने में मदद कर सकता है।
आयुष मंत्रालय (Ministry of Ayush), सीएसआईआर (CSIR), सीआईएमआर (CIMR), आईएलबीएस (ILBS) आदि जैसी प्रतिष्ठित शोध संस्थानों, विश्वविद्यालयों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों के साथ सक्रिय रूप से सहयोग करता है। इससे आयुष में ज्ञान साझा करने और वैज्ञानिक प्रगति को बढ़ावा मिलता है। उदाहरण के तौर पर, आयुष उत्कृष्टता केंद्र कार्यक्रम के तहत एम्स-दिल्ली परिसर में सेंटर फॉर इंटीग्रेटिव मेडिसिन एंड रिसर्च (CIMR) की स्थापना की गई। यहीं पर देश में पहली बार योग पर उचित वैज्ञानिक शोध शुरू हुआ। हृदय रोग, न्यूरोलॉजी, पल्मोनोलॉजि और स्त्री रोग विभागों से प्राप्त शुरुआती सफलताओं और मध्यवर्ती परिणामों को अब जांचा जा रहा है और उन्हें पीर रिव्यू समूहों और अंतरराष्ट्रीय चिकित्सा पत्रिकाओं द्वारा सत्यापित किया जा रहा है।
2022 में हुए वैश्विक आयुष निवेश और नवाचार शिखर सम्मेलन में, प्रधानमंत्री ने पारंपरिक चिकित्सा उत्पादों के लिए “आयुष चिह्न” लॉन्च करने की घोषणा की। यह चिह्न भारत के उच्च गुणवत्ता वाले आयुष उत्पादों की पहचान सुनिश्चित करेगा।
आयुष मंत्रालय भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) के साथ मिलकर चिकित्सा पर्यटन के लिए मानक भी विकसित कर रहा है। इससे विदेशों से आयुर्वेद आदि भारतीय उपचार कराने आने वाले लोगों को बेहतर सुविधाएं मिलेंगी। साथ ही, आयुष को अंतरराष्ट्रीय बाजार में मजबूत उपस्थिति बनाने में भी मदद मिलेगी। आईएसओ मानकों के माध्यम से 165 से अधिक देशों में आयुष उत्पादों की पहुंच बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है।
इस दिशा में अब तक हर्बल सामग्री, पंचकर्म उपकरण और योग सामग्री के लिए कुल 17 भारतीय मानक तैयार किए गए हैं। आयुष से जुड़ी जानकारी को वैश्विक स्तर पर मानकित करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय मानक संगठन (ISO) के स्वास्थ्य सूचना विज्ञान (Health Informatics) से जुड़ी समिति (ISO/TC 215) में एक कार्यदल (WG 10- पारंपरिक चिकित्सा) भी बनाया गया है।
आयुष उत्पादों और पद्धतियों के लिए गुणवत्ता मानक सुनिश्चित करने से न सिर्फ लोगों का भरोसा बढ़ता है, बल्कि आयुर्वेद जैसी पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों की वैज्ञानिक सत्यता भी बरकरार रहती है।
आयुष मंत्रालय शोध को बहुत महत्व देता है। वे शोधकर्ताओं के लेखों और प्रकाशनों को बढ़ावा देते हैं, जिनकी जांच विशेषज्ञों द्वारा की गई हो। इससे आयुष के क्षेत्र में नए शोध और जानकारियों का आदान-प्रदान होता है। शोधकर्ता, चिकित्सक और नीति बनाने वाले लोग इन प्रकाशनों से आयुष में हो रहे नए वैज्ञानिक विकासों की जानकारी रख सकते हैं। इसी उद्देश्य से आयुष रिसर्च पोर्टल बनाया गया है, जहां दुनिया भर में किए गए आयुष से जुड़े शोध (clinical, pre-clinical, drug research, and fundamental) उपलब्ध हैं। अब तक कुल 39109 शोध अध्ययन इस पोर्टल पर दर्ज हैं।
हाल ही में, आयुष मंत्रालय ने आईसीएमआर के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसके तहत क्षमता निर्माण को एक प्रमुख क्षेत्र के रूप में शामिल किया गया है।
आयुष मंत्रालय आयुर्वेद जैसी पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों को आधुनिक स्वास्थ्य सेवा प्रणालियों के साथ मिलाने का प्रयास भी कर रहा है। इसमें मुख्यधारा के डॉक्टरों के साथ सहयोग करना, दोनों चिकित्सा पद्धतियों के मिश्रण से इलाज करना और आयुष चिकित्सकों और आधुनिक चिकित्सा चिकित्सकों के बीच बातचीत को बढ़ावा देना शामिल है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति (2017) ने भी आयुष को एकीकृत स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली का हिस्सा बनाने की बात को मजबूती से उठाया है। इसी दिशा में कई सफल मॉडल स्थापित किए गए हैं, जैसे कि राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम (NRHM), राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य और तंत्रिका विज्ञान संस्थान (NIMHANS) आदि। इन प्रयासों से न केवल आयुष पद्धतियों की विश्वसनीयता बढ़ रही है, बल्कि उन्हें मुख्यधारा की स्वास्थ्य सेवाओं में भी शामिल किया जा रहा है। इसका मतलब है कि भविष्य में इलाज के लिए आयुर्वेद और आधुनिक चिकित्सा का सम्मिलित रूप से इस्तेमाल किया जा सकता है, जो मरीजों के लिए बेहतर और समग्र स्वास्थ्य का रास्ता खोलेगा। आयुर्वेद एक किफायती और टिकाऊ विकल्प के रूप में उभरता है, जो न सिर्फ नई सोच को बढ़ावा देता है, बल्कि भारत और दुनिया भर के लोगों की स्वास्थ्य संबंधी जरूरतों को पूरा करने में भी मदद करता है।
विश्व में परंपरागत चिकित्सा को बढ़ावा देने के लिए एक ऐतिहासिक कदम
भारत सरकार के समर्थन से जामनगर में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की पहली और एकमात्र वैश्विक परंपरागत चिकित्सा केंद्र (WHO-Global Centre for Traditional Medicine– WHO-GCTM) स्थापित की जा रही है। यह केंद्र शोध, सार्वजनिक स्वास्थ्य और क्षमता निर्माण को शामिल करते हुए एक समग्र दृष्टिकोण अपनाकर परंपरागत चिकित्सा के वैज्ञानिक आधार को मजबूत बनाने का प्रयास करेगा।
WHO-GCTM का लक्ष्य परंपरागत चिकित्सा को मुख्यधारा के स्वास्थ्य सेवा में एकीकृत करना, साक्ष्य-आधारित प्रथाओं को सुनिश्चित करना और परंपरागत चिकित्सा सेवाओं की समग्र गुणवत्ता और पहुंच को बढ़ाना है। यह केंद्र वैश्विक स्वास्थ्य मामलों पर नेतृत्व प्रदान करेगा और आयुष प्रणालियों को दुनियाभर में स्थापित करने में मदद करेगा। इसकी प्रमुख जिम्मेदारियों में से एक परंपरागत चिकित्सा की गुणवत्ता, सुरक्षा, प्रभावशीलता, पहुंच और तर्कसंगत उपयोग सुनिश्चित करना शामिल है। इसमें विभिन्न तकनीकी क्षेत्रों में मानक और दिशा-निर्देश विकसित करना, साथ ही डेटा संग्रह, विश्लेषण और प्रभाव आकलन के लिए उपकरण और तरीके शामिल हैं।
आयुष अनुसंधान का व्यावहारिक मॉडल
आयुष एक स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली के रूप में, स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में मौजूद चुनौतियों का समाधान खोजने के लिए शोध के अनिर्णीत क्षेत्रों (grey areas) को पहचानता है और उन पर ध्यान केंद्रित करता है।
आयुष प्रणालियां, प्राचीन ज्ञान पर आधारित हैं, जिनमें पारंपरिक ज्ञान का भंडार हैं। यह ज्ञान मौजूदा स्वास्थ्य चुनौतियों के समाधान के लिए संभावित सुझाव और नई दिशा प्रदान कर सकता है। आयुष अनुसंधान का लक्ष्य इस पारंपरिक ज्ञान का पता लगाना और उसे प्रमाणित करना है। सदियों से संचित ज्ञान का उपयोग करके स्वास्थ्य और कल्याण के लिए नई खोज की जा सकती है।
भारतीय पारंपरिक चिकित्सा ज्ञान के दुरुपयोग को रोकने के लिए ट्रेडिशनल नॉलेज डिजिटल लाइब्रेरी (TKDL) भारत की एक अग्रणी पहल है। पारंपरिक ज्ञान (Traditional Knowledge) स्वदेशी और स्थानीय समुदायों के लिए एक मूल्यवान संपत्ति है, जो अपनी आजीविका के लिए पारंपरिक ज्ञान पर निर्भर रहते हैं।
असंतुष्ट स्वास्थ्य आवश्यकताओं को पूरा करना
आधुनिक चिकित्सा पद्धति जहां सीमित हो सकती है, वहां आयुष विशेष रूप से उन अनबूझी स्वास्थ्य आवश्यकताओं को पूरा करने पर ध्यान केंद्रित करता है। मौजूदा स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों में जिन कमियों को पाया जाता है, उन अनिर्णीत क्षेत्रों (grey areas) की खोज करके, आयुष इन अंतरालों को भरने के लिए नवाचारी समाधान और पूरक उपचार प्रदान करने का लक्ष्य रखता है। इसमें दीर्घकालिक बीमारियों का प्रबंधन, जीवनशैली से संबंधित रोगों का समाधान, मानसिक स्वास्थ्य और निवारक स्वास्थ्य देखभाल को बढ़ावा देना शामिल हो सकता है।
उदाहरण के लिए सीसीआरएएस (CCRAS) ने मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में आयुर्वेद और योग के हस्तक्षेपों के ठोस सबूत प्रस्तुत करने के लिए विभिन्न शोध पहल की हैं। अधिकांश नैदानिक अध्ययन निमहंस बेंगलुरु (NIMHANS Bengaluru) के सहयोग से किए गए हैं। मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित रोग स्थितियों में आयुर्वेदिक हस्तक्षेपों के प्री-क्लिनिकल अध्ययन और सर्वेक्षण अध्ययन भी किए गए हैं। इसी तरह, सीआईएमआर (CIMR), एम्स (AIIMS) में उत्कृष्टता केंद्र के तहत, मानसिक स्वास्थ्य सहित रोगों पर योग आधारित शोध और विकास कार्य किए जा रहे हैं।
ब्राह्मी घृत और ज्योतिष्मती तेल का मनोविकार (Cognitive Deficit) के प्रबंधन में, आईटी पेशेवरों में व्यावसायिक तनाव के लिए आयुषएसआर टैबलेट (AyushSR Tablet), अल्जाइमर रोग में सरस्वती घृत की तंत्रिका आदि व्यापक आयुर्वेदिक हस्तक्षेप आदि सफलतापूर्वक किए गए हैं।
जीवन शैली में सुधार को बढ़ावा देना
स्वास्थ्य को बनाए रखने और सुधारने में जीवन शैली में बदलाव की भूमिका पर आयुष बल देता है। डॉक्टर अहमद रजा जो की यूनानी के चिकित्सक हैं और आयुष रजिस्टर्ड प्रैक्टिशनर भी हैं। उन्होंने बताया कि कैसे आयुष नवाचारी तरीकों की खोज करता है, जिसमें योग, ध्यान, आहार संबंधी दिशा-निर्देश और प्राकृतिक उपचार शामिल हैं।
सीआईएमआर सहयोग केंद्र (CIMR CoE project) के कई अध्ययनों से अब तक हृदय गति रुकने की बीमारी (heart failure), अनियमित दिल की धड़कन (rhythm disorders) और दिल का दौरा पड़ने से उबरने वाले रोगियों में सरल और किफायती योग के संभावित लाभ सामने आए हैं। अवसाद, नींद की गड़बड़ी, मधुमेह, उच्च रक्तचाप और एपिसोडिक माइग्रेन से पीड़ित रोगियों ने अपनी बीमारियों की आवृत्ति, तीव्रता और प्रभाव में सुधार की सूचना दी है। वहीं, दूसरी तरफ, प्रसवपूर्व योग गर्भवती महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान शरीर में होने वाले बदलावों के साथ शांत रहने में मदद कर रहा है। योग कार्यक्रम में धीमी और गहरी सांस लेने के व्यायाम, विश्राम तकनीक और योगासन शामिल हैं जो स्वायत्त तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करते हैं और रोगियों की मानसिकता और जीवन की गुणवत्ता में सुधार करते हैं।
भविष्य की चिकित्सा,रोक थाम और व्यक्तिगत देख भाल
आयुष का स्वास्थ्य और कल्याण के प्रति समग्र दृष्टिकोण उसे स्वास्थ्य देखभाल चुनौतियों के बहुआयामी पहलुओं को संबोधित करने में सक्षम बनाता है। यह मानता है कि स्वास्थ्य शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक पहलुओं सहित विभिन्न कारकों से प्रभावित होता है।
आयुर्वेद जीनोमिक्स (Ayurgenomics), जिसे आयुर्वेद जीनोमिक्स या आयुर्वेद में जीनोमिक दवा के रूप में भी जाना जाता है, एक उभरता हुआ क्षेत्र है, जो आयुर्वेद और जीनोमिक्स के सिद्धांतों को मिलाकर व्यक्तिगत स्वास्थ्य देखभाल को संबोधित करता है और उपचारों के प्रति प्रतिक्रिया में व्यक्तिगत भिन्नताओं के आनुवंशिक आधार को समझता है। आयुर्वेद जीनोमिक्स में व्यक्तिगत चिकित्सा में क्रांति लाने और स्वास्थ्य परिणामों को बेहतर बनाने की क्षमता है। सीएसआईआर-आईजीआईबी सहयोग केंद्र (CSIR-IGIB CoE),त्रिसूत्र (ट्रांसलेशनल रिसर्च एंड इनोवेटिव साइंस थ्रू आयुर्वेद जीनोमिक्स) के माध्यम से आयुर्वेद जीनोमिक्स पर उच्च स्तरीय शोध किए जा रहे हैं।
सभी के लिए स्वास्थ्य सेवा (Universal Health Coverage) और सतत विकास लक्ष्य (SDGs) को प्राप्त कर ने में महत्वपूर्ण भूमिका
भारत में स्वास्थ्य देखभाल की बहुलवादी नींव का एक महत्वपूर्ण हिस्सा “स्वस्थस्य स्वस्थ्य रक्षणम्” के सिद्धांत पर आधारित आयुष चिकित्सा प्रणाली है। आयुष स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज के लिए डब्ल्यूएचओ के रणनीतिक उद्देश्यों का अनुपालन कर रही है- पहुंच (Accessibility), सामर्थ्य (Affordability), उपलब्धता (Availability), और स्वीकार्यता (Acceptability)। साथ ही, आयुष मंत्रालय के प्रयास संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) के अनुरूप हैं।
आयुष POSHAN (प्रधानमंत्री ओवरआर्चिंग स्कीम फॉर होलिस्टिक न्यूट्रीशन) अभियान के माध्यम से जीरो हंगर (एसडीजी 2) प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस अभियान के तहत, आयुष मंत्रालय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के साथ समन्वय कर आयुर्वेद, योग और अन्य आयुष प्रणालियों के सिद्धांतों और प्रथाओं के माध्यम से गर्भवती महिलाओं, स्तनपान कराने वाली माताओं और बच्चों में कुपोषण और रक्तअल्पता के प्रबंधन में सहयोग कर रहा है।
आयुष हेल्थकेयर राष्ट्रीय आयुष मिशन (NAM), एकीकृत स्वास्थ्य कार्यक्रमों और आयुष हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर्स (AHWCs) के माध्यम से परिश्रमपूर्वक अच्छे स्वास्थ्य और कल्याण (एसडीजी 3) और असमानताओं में कमी (एसडीजी 10) की दिशा में काम करता है, साथ ही साथ स्वास्थ्य असमानता और जेब से होने वाले खर्च को कम करने का लक्ष्य रखता है।
जड़ी-बूटियों और प्रकृति के संसाधनों के उपयोग के साथ, आयुष ने हमेशा सतत शहरों और समुदायों (एसडीजी 11) का समर्थन किया है। भारत में आयुष के माध्यम से प्राप्त किया जाने वाला एक एसडीजी है “लक्ष्यों के लिए भागीदारी” (एसडीजी 17), जो विभिन्न स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों के बीच साझेदारी और ज्ञान व विशेषज्ञता के आदान-प्रदान को बढ़ावा देता है। इससे स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता और पहुंच में सुधार लाने में मदद मिली है।
‘वन वर्ल्ड वन हेल्थ’ की उभरती अवधारणा वैश्विक स्वास्थ्य चुनौतियों का समाधान करने के लिए विभिन्न क्षेत्रों और हितधारकों के बीच सहयोग और समन्वय की आवश्यकता पर बल देती है। कोविड -19 ने भी ‘वन वर्ल्ड वन हेल्थ’ दृष्टिकोण की आवश्यकता को रेखांकित किया है, जो मानव, पशु और पर्यावरणीय स्वास्थ्य के परस्पर संबंध को स्वीकार करता है।
डॉक्टर राजगोपाला के अनुसार, “आयुष प्रणालियां पारंपरिक ज्ञान और पीढ़ियों से चली आ रही प्रथाओं पर आधारित हैं। इस ज्ञान में मनुष्यों, जानवरों और पर्यावरण के बीच संबंधों की गहरी समझ शामिल है।” आयुष पारंपरिक प्रथाओं को साझा करके ‘वन वर्ल्ड वन हेल्थ’ दृष्टिकोण में अपना विशेषज्ञ योगदान दे सकता है, जो स्वास्थ्य और पारिस्थितिकी तंत्र में सामंजस्य और संतुलन को बढ़ावा देती हैं।
जी20 अध्यक्षता, डब्ल्यूएचओ-जीसीटीएम आदि जैसी पहलों का केंद्रबिंदु “वसुधैव कुटुम्बकम” है जिसका अर्थ है “विश्व एक परिवार है”। यह एक ऐसा दर्शन है, जो सभी प्राणियों की परस्पर निर्भरता और एक स्वस्थ और अधिक समानता वाले विश्व के निर्माण के लिए सहयोग करने के महत्व पर बल देता है। आयुष ने हमेशा भारतीय और वैश्विक स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और सभी के लिए गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने में योगदान दिया है, जो सस्ती और सुलभ हों।
इसी दृष्टिकोण का समर्थन करते हुए, अनुसंधान और नवीन समाधानों के क्षेत्रों पर आयुष का ध्यान स्वास्थ्य देखभाल चुनौतियों का समाधान करने और समग्र कल्याण में सुधार करने की अपनी प्रतिबद्धता को दर्शाता है। जीवन विज्ञान के रूप में आयुष समग्र दृष्टिकोण, व्यक्तिगत चिकित्सा, निवारक उपायों, आधुनिक चिकित्सा के साथ एकीकरण, वैज्ञानिक शोध-आधारित प्रथाओं और पारंपरिक ज्ञान के संरक्षण को अपनाकर आबादी के स्वास्थ्य को बढ़ावा देता और रक्षा करता है। इन सिद्धांतों को अपनाकर, आयुष “स्वास्थ्य सभी के लिए” के लक्ष्य को प्राप्त करने के उद्देश्य से स्वास्थ्य देखभाल के लिए एक व्यापक और रोगी-केंद्रित दृष्टिकोण में योगदान देता है।
SOURCE : EODB NEWS | PUBLISHED : 25 JUNE 2024