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90 दिनों में 300 km रोड बन सकता है ई-हाईवे, लचर टेंडर से लगे 6 साल: अभिजीत सिन्हा

File Photo : Minister Road Transport & Highway Sri Nitin Gadkari addressing on the occasion Introduction of HAM in 2015, New Delhi.

प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल में UPA सरकार के मुक़ाबले प्रतिदिन 8-9 km की जगह अब 38-40 km सड़क निर्माण होता है। अप्रैल 2020 में श्री गड़करी ने 30 km का लक्ष्य पूरा होने पर 60 km प्रतिदिन सड़क बनाने की इच्छा ज़ाहिर की। ये तीव्र सड़क निर्माण, उनके इज आफ़ डुइंग बिज़नेस के लिए किए गए उनके रिफ़ार्मस से टेंडरिंग की प्रक्रिया में तेज़ी और पारदर्शिता से आने से ही संभव हो सका। वर्षों से रुके हुए प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए जहाँ ज़रूरत पड़ी वहाँ हाइब्रिड एन्यूटी माडल (HAM) जैसे नये माडलों को 2015 से ही प्रभाव में लाया गया. लेकिन इन राजमार्गो को इ-हाईवे बनाने के लिए सिर्फ सड़क एवं परिवहन मंत्रालय ही नहीं बल्कि कई अन्य मंत्रालयों और विभागों से भी समन्वय आवश्यक होता है।

Abhijeet Sinha, National Program Director, Ease of Doing Business at Advance Services for Social and Administrative Reforms, Project Director N.H.E.V.

इज आफ़ डूइंग बिज़नेस के लिए तकनीकी पायलट करने वाली संस्था अस्सार के कार्यक्रम निदेशक अभिजीत सिन्हा ने आज दिल्ली में बताया कि एन्यूटी हाइब्रिड ई-मोबिलिटी (ए.एच.ई.एम) पर ई-हाईवे बनाने में 90 दिन का समय पर्याप्त होता है परंतु लचर टेंडरिग प्रक्रिया के कारण इसमें कई साल लग जाते है। 2014 से 2020 तक इन्ही कारणों से राजमार्गों को ई-हाईवे बनाने की टेंडरिंग हुई लेकिन योजना ज़मीन पर व्यावहारिक और व्यापारिक रूप से ज़मीन पर नहीं आ सकी। नेशनल हाईवे फ़ॉर इलेक्ट्रिक वेहिक्ल (एन.एच.ई.वी.) कार्यक्रम का तकनीकी ट्रायल पूरा होने के बाद किसी भी राजमार्ग या एक्सप्रेसवे को 90 दिनो में ई-हाईवे बनाया जा सकेगा। बार-बार टेंडरिंग की आवश्यकता नहीं होगी जिस से समय की बचत होगी साथ ही आगरा-दिल्ली-जयपुर ई-हाईवे के अनुभवी प्रोडक्ट और तकनीकी सेवा देने वाली कंपनियाँ देश के किसी राज्य में ई-हाईवे बना सकेंगी।

 

इसकी रिफ़ोर्म की आवश्यकता पर ज़ोर देते हुए उन्होंने बताया की इलेक्ट्रिक वेहिक्ल की तकनीक नई और चार्जर व परिवहन पर आश्रित होने की वज़ह से परंपरागत ख़रीद में सही चुनाव सुनिश्चित करने में टेंडर काफ़ी जटिल हो जाते है। और प्रायः सही आवेदन के अभाव में या तो रद्द हो जाते है या रुक जाते है। एन.एच.ई.वी. में सरकारी या निजी निवेशकों को सिर्फ़ चार्जिंग स्टेशन और राजमार्ग पर इलेक्ट्रिक वाहन के प्रतिशत का चुनाव करना होता है और बाक़ी झंझटों से छुटकारा मिल जाता है। चार्जिंग स्टेशन में लागत की वापसी की अवधि की भी सटीक और व्यावहारिक जानकारी मिल जाती है।

वित्तीय विकल्पों पर टिप्पणी करते हुए सिन्हा ने बताया कि ए.एच.ई.एम माडल में 4 से ज़्यादा विकल्प है जो सरकारी और निजी उपक्रमों के हित को सुरक्षित रखते हुए उन्हें निवेश का मौक़ा देते हैं। आगरा-दिल्ली-जयपुर ई-हाईवे पहला प्रारूप होने के कारण सरकारी उपक्रमों को निवेश में प्राथमिकता देता है परंतु देश के अन्य ई-हाईवे परियोजनाओं को निजी निवेशकों के लिए भी खोला जा सकेगा। ऊर्जा मंत्रालय की चार्जिंग स्टेशन के लिए न्यूनतम औपचारिकता की घोषणा से इसमें काफ़ी सहयोग मिला और बैटरी और वाहन अलग बेचने की अनुमति से ये परियोजना व्यापारिक रूप से अधिक किफ़ायती और व्यवहारिक हो गई।

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